फैटी लीवर रोग से छुटकारा,
लीवर में फैट जमा होने से होता है ये रोग
ज़्यादा फैट लीवर की प्रक्रीया की गति को रोग देता है
मुख्य कारण जरूरत से ज़्यादा शराब पीना है
कई दवाइयां भी हैं इसके लिए जिम्मेदार
शरीर का हर एक अंग जिंदगी में अपना ही महत्व रकता है। इसमें से एक अंग में भी छोटी-सी समस्या आपके लिए जिंदगीभर की परेशानी बन सकती है। बॉडी में दूसरा सबसे बड़ा अंग माना जाने वाला अंग लीवर है। बदलते खान-पान के स्टाइल ने फैटी लीवर रोग के मरीज़ों में वृद्धि कर दी है। फास्ट-फूड, तला हुआ खाना लीवर पर अटैक करता है और उसे सही से काम करने से रोकने लगता है। जो आगे चलकर फैटी लीवर रोग में बदल जाता है।
फैटी लीवर या स्टियोटोसिस वह हालात है, जब लीवर में फैट (वसा) जमा हो जाती है। वैसे तो लीवर में फैट होना आम बात है, लेकिन पांच से 10 प्रतिशत ज्यादा फैट होना बीमारी कहलाता है। लगभग 30 प्रतिशत लोगों में यह बीमारी पाई जाती है और 60 प्रतिशत वे लोग, जिन्हें दिल के रोगों का खतरा है और 90 प्रतिशत मोटापे के शिकार लोगों को भी फैटी लीवर होने का खतरा रहता है।
लीवर शरीर का दूसरा बड़ा अंग है। हमारा रोज़ का खान-पान और खून में शामिल हानिकारक तत्व को लीवर प्रोसेस करता है। अगर लीवर में बहुत फैट हो जाए तो इस प्रक्रिया में रुकावट आ जाती है। लीवर नए लीवर सेल बनाकर अपनी क्षतिग्रस्त कोशिकाओं की पूर्ति कर लेता है। जब लगातार क्षति होती रहती है तो लीवर पर जख्म हो जाते हैं, जिसे 'सिरोसिस' कहा जाता है।
लीवर की इस बीमारी की प्रमुख वजह शराब का अत्यधिक सेवन है। शराब की लत के अलावा मोटापा, हाइपर लिपिडेमिया, मधुमेह वाले रक्त में अत्यधिक वसा का होना, तेजी से वजन कम होना और एस्प्रिन, स्टिरॉयड, टैमोजिफेन और टेट्रासाइक्लीन जैसी दवाओं के दुष्प्रभाव के कारण यह बीमारी हो सकती है।
फैटी लीवर बीमारी कई किस्म की होती है। शराब के बिना होने वाली फैटी लीवर बीमारी तब होती है, जब लीवर को फैट तोड़ने में मुश्किल होती है। इससे लीवर टीशूज में वसा का जमाव हो जाता है।
एल्कोहलिक फैटी लीवर शराब से संबंधित लीवर की शुरुआती बीमारी है। नॉन-एल्होलिक फैटी लीवर की स्थिति में लीवर में सूजन नहीं होती, लेकिन नॉन-एल्होलिक स्टेयटो-हैपेटाइटिस होने पर लीवर जिसमें सूजन भी होती है। एक दुर्लभ, लेकिन जानलेवा हालात में यह बीमारी गर्भवती महिला के लिए मुश्किलें पैदा कर सकती है।
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