कोल्हू का बैल
मैंने सुना है कि एक बहुत बड़ा तार्किक तेल खरीदने गया था तेली के घर। तेली का कोल्हू चल रहा था। बैल कोल्हू खींच रहा था, तेल निचुड़ रहा था। तार्किक था! उसने देखा यह काम, कोई हांक भी नहीं रहा है बैल को, वह अपने आप ही चल रहा है।
उसने पूछा, गजब, यह बैल अपने आप चल रहा है! कोई हांक भी नहीं रहा! रुक क्यों नहीं जाता? उस तेल वाले ने कहा, महानुभाव, जब कभी यह रुकता है, मैं उठकर इसको फिर हांक देता हूं। इसको पता नहीं चल पाता कि हांकने वाला पीछे मौजूद है या नहीं।
तार्किक-तार्किक था। उसने कहा, लेकिन तुम तो बैठे दुकान चला रहे हो, इसको दिखाई नहीं पड़ता? उस तेल वाले ने कहा, जरा गौर से देखें, इसकी आंखों पर पट्टियां बांधी हुई हैं। इसे दिखाई कुछ नहीं पड़ता। जब भी यह जरा ठहरा या रुका कि मैंने हांका। पर उस तार्किक ने कहा कि तुम तो पीठ किये बैठे हो उसकी तरफ। पीछे चल रहा है कोल्हू तुम्हें पता कैसे चलता है? उसने कहा, आप देखते नहीं बैल के गले में घंटी बांधी हुई है? जब तक बजती रहती है, मैं समझता हूं चल रहा है। जब रुक जाती है, उठकर मैं हांक देता हूं। इसको पता नहीं चल पाता। उस तार्किक ने कहा, अब एक सवाल और। क्या यह बैल खड़े होकर गर्दन नहीं हिला सकता है? उस तेल वाले ने कहा, जरा धीरे-धीरे बोलें। कहीं बैल न सुन ले।
उसने पूछा, गजब, यह बैल अपने आप चल रहा है! कोई हांक भी नहीं रहा! रुक क्यों नहीं जाता? उस तेल वाले ने कहा, महानुभाव, जब कभी यह रुकता है, मैं उठकर इसको फिर हांक देता हूं। इसको पता नहीं चल पाता कि हांकने वाला पीछे मौजूद है या नहीं।
तार्किक-तार्किक था। उसने कहा, लेकिन तुम तो बैठे दुकान चला रहे हो, इसको दिखाई नहीं पड़ता? उस तेल वाले ने कहा, जरा गौर से देखें, इसकी आंखों पर पट्टियां बांधी हुई हैं। इसे दिखाई कुछ नहीं पड़ता। जब भी यह जरा ठहरा या रुका कि मैंने हांका। पर उस तार्किक ने कहा कि तुम तो पीठ किये बैठे हो उसकी तरफ। पीछे चल रहा है कोल्हू तुम्हें पता कैसे चलता है? उसने कहा, आप देखते नहीं बैल के गले में घंटी बांधी हुई है? जब तक बजती रहती है, मैं समझता हूं चल रहा है। जब रुक जाती है, उठकर मैं हांक देता हूं। इसको पता नहीं चल पाता। उस तार्किक ने कहा, अब एक सवाल और। क्या यह बैल खड़े होकर गर्दन नहीं हिला सकता है? उस तेल वाले ने कहा, जरा धीरे-धीरे बोलें। कहीं बैल न सुन ले।
तुम जरा अपनी जिंदगी तो गौर से देखो। न कोई हांक रहा है, मगर तुम चले जा रहे हो। आंख बंद है। गले में खुद ही घंटी बांध ली है। वह भी किसी और ने बांधी, ऐसा नहीं। हालांकि तुम कहते यही हो। पति कहता है, पत्नी ने बांध दी। चलना पड़ता है। बेटा कहता है, बाप ने बाध दी है। बाप कहता है, बच्चों ने बांध दी है। कौन किसके लिए घंटी बांध रहा है! कोई किसी के लिए नहीं बाध रहा है। बिना घंटी के तुम्हें ही अच्छा नहीं लगता। तुमने घंटी को श्रृंगार समझा है। आंख पर पट्टियां हैं, घंटी बंधी है, चले जा रहे हो। कहां पहुंचोगे? इतने दिन चले, कहां पहुंचे? मंजिल कुछ तो करीब आई होती!
लेकिन जब भी तुम्हें कोई चौंकाता है, तुम कहते हो, धीरे बोलो। जोर से मत बोल देना, कहीं हमारी समझ में ही न आ जाए। तुम ऐसे लोगों से बचते हो, किनारा काटते हो, जो जोर से बोल दें। संतों के पास लोग जाते नहीं। और अगर जाते हैं, तो ऐसे ही संतों के पास जाते हैं जो तुम्हारी आंखों पर और पट्टियां बंधवा दें। और तुम्हारी घंटी पर और रंग-पालिश कर दें। न बज रही हो तो और बजने की व्यवस्था बता दें। ऐसे संतों के पास जाते हैं कि तुम्हारे पैर अगर शिथिल हो रहे हों और बैठने की घड़ी करीब आ रही हो, तो पीछे से हांक दें कि चलो, बैठने से कहीं कोई पहुंचा है! कुछ करो। कर्मठ बनो। परमात्मा ने भेजा है तो कुछ करके दिखाओ।
लेकिन जब भी तुम्हें कोई चौंकाता है, तुम कहते हो, धीरे बोलो। जोर से मत बोल देना, कहीं हमारी समझ में ही न आ जाए। तुम ऐसे लोगों से बचते हो, किनारा काटते हो, जो जोर से बोल दें। संतों के पास लोग जाते नहीं। और अगर जाते हैं, तो ऐसे ही संतों के पास जाते हैं जो तुम्हारी आंखों पर और पट्टियां बंधवा दें। और तुम्हारी घंटी पर और रंग-पालिश कर दें। न बज रही हो तो और बजने की व्यवस्था बता दें। ऐसे संतों के पास जाते हैं कि तुम्हारे पैर अगर शिथिल हो रहे हों और बैठने की घड़ी करीब आ रही हो, तो पीछे से हांक दें कि चलो, बैठने से कहीं कोई पहुंचा है! कुछ करो। कर्मठ बनो। परमात्मा ने भेजा है तो कुछ करके दिखाओ।
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