श्रीराम के मर्यादा पुरुषोत्तम होने का वर्णन है

रामायण"
रामायण, यह एक ऐसा ग्रंथ है जिसमें ना सिर्फ भगवान श्रीराम के मर्यादा पुरुषोत्तम होने का वर्णन है, बल्कि इसमें उन घटनाओं का भी उल्लेख हैं यह दर्शाती हैं बल्किकि भगवान राम एक न्यायप्रिय राजा, आदर्श बेटे और प्रिय भाई भी।
"मनुष्य"
निश्चित तौर पर जिस व्यक्ति के अंदर इतनी खूबियां हो वह मनुष्य की उच्च श्रेणी में शामिल हो जाता है। भले ही वह विष्णु अवतार थे लेकिन उन्होंने अपना जीवन एक मनुष्य की भांति ही व्यतीत किया था।
"भगरान राम"
रामायण में भगरान राम के जीवन विस्तृत उल्लेख है, जो ना सिर्फ उस दौर के बल्कि आज के मानव के लिए भी प्रेरणास्त्रोत है। रामायण में अनेक चौपाइयां हैं, जिनमें से एक में यह बताया गया है कि किस तरह के कर्म करने वाले मनुष्य का जन्म एक राक्षस के समान है, वह मानव शरीर में एक असुर के समान है।
"चौपाई"
इस चौपाई में भोलेशंकर, माता पार्वती को बता रहे हैं कि किस तरह का मानव एक पिशाच के समान है।
"चौपाई"
बाढ़े खल बहु चोर जुआरा। जे लंपट परधन परदारा।। मानहिं मातु पता नहिं देवा। साधुन्ह सन करवावहिं सेवा।। जिन्ह के यह आचरन भवानी। ते जानेहु निसिचर सब प्रानी।।
"अर्थ"
इस चौपाई का अर्थ है कि जो व्यक्ति किसी दूसरी की स्त्री, दूसरे की धन-दौलत पर नजर रखता है या जो व्यक्ति चोरी करता है, जुआ खेलता है, अध्यात्म से दूर रहता है और अपने साधु-संतों का अपमान करता है वह राक्षस के समान है।
"दूसरी स्त्री पर नजर"
जो व्यक्ति अपनी पत्नी के अलावा दूसरी स्त्री पर नजर रखता है वह ना सिर्फ अपना, बल्कि अपने कुल के पतन का रास्ता भी तैयार करता है।
"चोरी और जुआ"
चोरी और जुआ वो काम है जिसमें दूसरों का धन हथिया लिया जाता है और जो व्यक्ति दूसरों के धन पर रखता है, वो एक पिशाच है। बिना परिश्रम के धन कमाना या किसी और का धन हथिया लेना पपा के समान है, ऐसे व्यक्ति का सर्वनाश निश्चित है। ये व्यक्ति के साथ-साथ उसके परिवार का भी सर्वनाश करता है।
"दूसरों की धन-दौलत"
जो व्यक्ति दूसरों की धन-दौलत संपत्ति पर नजर रखता है गह एक ऐसे राक्षस के समान है जो खुद कोई मेहनत नहीं करता, बल्कि दूसरे व्यक्ति की संपत्ति पर नजर रखता है। जो अन्य लोगों की मेहनत की कमाई छीनता है उसे अपने पापों की सजा जरूर मिलती है।
"ऋषि-मुनियों का अपमान"
सनातन धर्म में गुरु और ऋषि-मुनियों को सबसे ऊंचा स्थान प्राप्त है। लेकिन जो लोग इनका अपमान करते हैं, इनकी सेवा नहीं करते वो किसी पिशाच से कम नहीं हैं। जो व्यक्ति इनकी महत्ता को नहीं समझता वह मानव शरीर में एक पिशाच है।
"माता-पिता का अपमान"
माता-पिता का स्थान कोई दूसरा नहीं ले सकता, उनके लिए अपना सर्वस्व त्यागना भी कम है। लेकिन जो व्यक्ति उनका अपमान करता है, उन्हें मुश्किल में छोड़ देता है वह अधर्मी है, उसे सजा अवश्य मिलती है।
"दूसरों के दुख में खुश रहने वाला"
जो लोग दूसरों का बुरा करने के बाद भी खुश रह सकते हैं, दूसरों के आंसुओं में अपनी हंसी तलाशते हैं वो लोग एक क्रूर दानव के समान है।

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