भगवान करे तू दिनों दिन बढ़ता ही रहे ।"

*🌷🌷।।यह भी नहीं रहने वाला।।🌷🌷* 
         एक साधु देश में यात्रा केलिए पैदल निकला । रात हो जाने पर एक गाँव में आनंद नाम के व्यक्ति के दरवाजे पर रुका ।आनंद ने फकीर की खूब सेवा की । दूसरे दिन आनंद ने बहुत सारे उपहार देकर विदा किया । फकीर ने आनंद के लिए प्रार्थना की  - "भगवान करे तू दिनों दिन बढ़ता ही रहे ।"





       फकीर की बात सुनकर आनंद हँस पड़ा और बोला - "अरे, फकीर ! जो है यह भी नहीं रहने वाला ।" फकीर आनंद की ओर देखता रह गया और वहाँ से चला गया ।

      दो वर्ष बाद फकीर फिर आनंद के घर गया और देखा कि सारा वैभव समाप्त हो गया है । पता चला कि आनंद अब बगल के गाँव में एक जमींदार के यहाँ नौकरी करता है । फकीर आनंद से मिलने गया । आनंद ने अभाव में भी फकीर का स्वागत किया । झोंपड़ी में फटी चटाई पर बिठाया । खाने के लिए सूखी रोटी दी । दूसरे दिन जाते समय फकीर की आँखों में आँसू थे । फकीर कहने लगा - "हे भगवान् ! ये तूने क्या किया ?"

     आनंद पुन: हँस पड़ा और बोला - "फकीर तू क्यों दु:खी हो रहा है ? महापुरुषों ने कहा है कि भगवान्  इन्सान को जिस हाल में रखे, इन्सान को उसका धन्यवाद करके खुश रहना चाहिए । समय सदा बदलता रहता है और सुनो ! यह भी नहीं रहने वाला ।"

      फकीर सोचने लगा - "मैं तो केवल भेष से फकीर हूँ । सच्चा फकीर तो तू ही है, आनंद।"

      कुछ वर्ष बाद फकीर फिर यात्रा पर निकला और आनंद से मिला तो देखकर हैरान रह गया कि आनंद  तो अब जमींदारों का जमींदार बन गया है । मालूम हुआ कि जिस जमींदार के यहाँ आनंद  नौकरी करता था वह सन्तान विहीन था, मरते समय अपनी सारी जायदाद आनंद को दे गया । फकीर ने आनंद  से कहा - "अच्छा हुआ, वो जमाना गुजर गया । भगवान्  करे अब तू ऐसा ही बना रहे ।"

    यह सुनकर आनंद  फिर हँस पड़ा और कहने लगा - "फकीर ! अभी भी तेरी नादानी बनी हुई है ।"

  फकीर ने पूछा - "क्या यह भी नहीं रहने वाला ?"

    आनंद ने उत्तर दिया - "हाँ, या तो यह चला जाएगा या फिर इसको अपना मानने वाला ही चला जाएगा । कुछ भी रहने वाला नहीं  है। और अगर शाश्वत कुछ है तो वह है परमात्मा और उस परमात्मा का अंश आत्मा ।" आनंद  की बात को फकीर ने गौर से सुना और चला गया ।

     फकीर कुछ साल बाद फिर लौटता है तो देखता है कि आनंद  का महल तो है किन्तू कबूतर उसमें गुटरगूं कर रहे हैं, और आनंद  का देहांत हो गया है। बेटियाँ अपने-अपने घर चली गयीं, बूढ़ी पत्नी कोने में पड़ी है ।

*कह रहा है आसमां यह समा कुछ भी नहीं।*

*रो रही हैं शबनमें, नौरंगे जहाँ कुछ भी नहीं।*

*जिनके महलों में हजारों रंग के जलते थे फानूस।*

*झाड़ उनके कब्र पर, बाकी निशां कुछ भी नहीं।*

फकीर कहता है - "अरे इन्सान ! तू किस बात का अभिमान करता है ? क्यों इतराता है ? यहाँ कुछ भी टिकने वाला नहीं है, दु:ख या सुख कुछ भी सदा नहीं रहता । तू सोचता है, पडोसी मुसीबत में है और मैं मौज में हूँ । लेकिन सुन, न मौज रहेगी और न ही मुसीबत । सदा तो उसको जानने वाला ही रहेगा । सच्चे इन्सान वे हैं, जो हर हाल में खुश रहते हैं ।        *मिल गया माल तो उस माल में खुश रहते है। और हो गये बेहाल तो उस हाल में खुश रहते हैं ।"*

फकीर कहने लगा - "धन्य है, आनंद ! तेरा सत्संग और धन्य है तुम्हारे सद्गुरु ! मैं तो झूठा फकीर हूँ, असली फकीरी तो तेरी जिन्दगी है । अब मैं तेरी तसवीर देखना चाहता हूँ, कुछ फूल चढ़ाकर दुआ तो मांग लूं ।"

  फकीर दुसरे कमरे मे जाता है तो देखता है कि आनंद  ने अपनी तस्वीर  पर लिखवा रखा है -
"आखिर में यह भी  नहीं रहेगा ।"

Comments