ये कहानी नहीं हकीकत है:
#बक्शो_देवी।
हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले के इंदिरा स्टेडियम में हुई ५००० मीटर की दौड़ में इस अति गरीब छात्रा ने शून्य से भी नीचे तापमान में नंगे पाँव दौड़ में सबको पीछे छोड़ती हुई स्वर्ण पदक जीत ली। लोगों की आँखों में तब आंसू आ गए जब बक्शो पेट में पथरी के दर्द को बार-२ संभालती और दौड़ने को जोर लगाती। बक्शो देवी के पिता नहीं हैं, माँ किसी तरह घर का गुज़ारा चलाती है, ऐसे में बक्शो के उच्च शिक्षा के सपने संघर्ष करने को मज़बूर है।
पुरूस्कार में मिली ६००० रूपये बक्शो अपनी मां को देगी ताकि घर का गुज़ारा चलाया जा सके। घोर गरीबी के चलते बक्शो के भाई-बहन माध्यमिक शिक्षा से आगे नहीं पढ़ पाए, लेकिन बक्शो किसी भी तरह उच्च शिक्षा हासिल करना चाहती है साथ ही वह खेलों में भी ऊँचा मुकाम हासिल करने का जज्बा रखती है। बख्शो अपने 10 वर्षीय भाई को भी पढ़ाना चाहती है।
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हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले के इंदिरा स्टेडियम में हुई ५००० मीटर की दौड़ में इस अति गरीब छात्रा ने शून्य से भी नीचे तापमान में नंगे पाँव दौड़ में सबको पीछे छोड़ती हुई स्वर्ण पदक जीत ली। लोगों की आँखों में तब आंसू आ गए जब बक्शो पेट में पथरी के दर्द को बार-२ संभालती और दौड़ने को जोर लगाती। बक्शो देवी के पिता नहीं हैं, माँ किसी तरह घर का गुज़ारा चलाती है, ऐसे में बक्शो के उच्च शिक्षा के सपने संघर्ष करने को मज़बूर है।
पुरूस्कार में मिली ६००० रूपये बक्शो अपनी मां को देगी ताकि घर का गुज़ारा चलाया जा सके। घोर गरीबी के चलते बक्शो के भाई-बहन माध्यमिक शिक्षा से आगे नहीं पढ़ पाए, लेकिन बक्शो किसी भी तरह उच्च शिक्षा हासिल करना चाहती है साथ ही वह खेलों में भी ऊँचा मुकाम हासिल करने का जज्बा रखती है। बख्शो अपने 10 वर्षीय भाई को भी पढ़ाना चाहती है।
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