शाम को अपने परिवार के साथ घुमने निकली थी भामिनी, तिरुपति बालाजी भगवान के दर्शन कर, उनका आशीर्वाद और प्रसाद लेने के बाद, मंदिर के वृद्ध पुजारी को पैर छूकर प्रणाम किया उसने|
जान-पहचान वालों से लेकर अनजान व्यक्ति तक को हाथ जोड़कर नमस्ते कहनेवाला उसका आधुनिक परिवार, यानी मेडिकल कॉलेज में पढ़ रही बेटी और अंग्रेजी माध्यम से सातवीं कक्षा में पढ़ रहा बेटा जिसे थैन्क्यु गाॅड कह माथा और दिल को स्पर्श करना सिखाया गया था के साथ-साथ , अभियन्ता पति के चेहरों पर इस बात की साफ नाराज़गी छलक रही थी कि भामिनी ऐसे ही सभी को प्रणाम कर लेती है |
मंदिर से बाहर निकलते ही बेटे ने नाराज़गी जाहिर करते हुए पूछा,"आप मंदिर में भगवान को प्रणाम कर आशीर्वाद ले चुकी थी। फिर पंडित जी को पैर छूकर प्रणाम क्यों किया?"
"पंडितजी बुजुर्ग थे,और बड़े-बूढ़े का आशीर्वाद लेना चाहिये। वह कभी खाली नहीं जाता, ऐसा बचपन से हमें सिखाया गया है, इसलिए |"
"इन आशीर्वादो से क्या होता है मम्मी?" अभी भी बेटे की आवाज़ में नाराज़गी थी |
"बेटा,आशीर्वाद बहुत बड़ी चीज होती है| कभी-कभी जीवन के बडी़ -से-बडी़ मुश्किल समय में ,जब कोई हमारे साथ नहीं होता या कोई दवा काम नहीं आती, तभी आशीर्वाद या दुआएँ हमारा हथियार बन, हमें संभाल लेती है, बचा लेती है। इसलिए तो हमारे हिंदू धर्म में आदमी घर में पूजा-अर्चना करके या मंदिर जाकर भगवान के दर्शन करके ,पूजा करके और अपने से बड़ों को प्रणाम करके आशीर्वाद लेता है।
"सच मम्मा? आशीर्वाद में इतनी ताकत होती है? वो कैसे?" अब बेटे के स्वरों मे जिज्ञासा भरी थी।
समझाते हुये भामिनि बोली "हम किसी को प्रणाम करते हैं तो उनके मुँह से बिना छल के, बिना कुछ सोचे-समझे आशीर्वाद निकल आता है। ठीक उसी तरह जब हम किसी को दुख पहूँचाते है तो बद्दूआ भी निकलता है , और दोनो ही बहुत असरदार होते है क्योंकि हमारा हिंदू धर्म कहता है कि दिन में एक बार कभी न कभी, हर किसी के जिह्वा से माँ सरस्वती खुद बोलती हैं| इसलिए हमेशा आशीर्वाद लेने की कोशिश करना चाहिए और बद्दूआ से बचना चाहिए |" दोनो बच्चे बहुत ध्यान से उसकी बाते सुन रहे थे |
भामिनी बातें करते-करते अपने परिवार के साथ पैदल चलकर घर आ रही थी।
रात के आठ बज चुके थे| मंदिर से थोड़ी दूरी पर थोडा़ अंधेरा था वहाँ एक बारह-तेरह साल की लड़की रोए जा रही थी और उसको घेरकर खड़ी कुछ औरतें उससे सवाल किए जा रही थी- तुमने चेहरा देखा? किधर भागा वह? कैसे कपड़े पहने थे? आदि-आदि |
"क्या हुआ?" भामिनी के पूछने पर औरतों ने बताया- यह बच्ची ट्यूशन पढ़ कर आ रही थी। तभी पीछे से आकर कोई इसको गलत तरीके से छूकर भाग गया |
"कहाँ रहती है ये?"
उस बिल्डिंग में दसवीं माला पर सामने की बिल्डिंग की तरफ हाथ दिखाते हुए एक औरत ने कहा।
तब तक किसी ने उससे पूछ कर उसके माता-पिता को फोन कर दिया था| वह आ गए और अपनी बेटी को लेकर सड़क किनारे बनी ऊंची-ऊंची इमारतों में लगी सी.सी. टीव्ही को खंगालकर उस लड़के को ढूंढने के लिए निकल पड़े।
औरतें उस लड़के से ज्यादा उसके माता-पिता को गाली दे रही थीं- ऐसे पुत्र को जन्म देने से पहले उसकी माँ मर क्यों नहीं गई जैसे शव्द उसे कहा जा रहा था |
भामिनी असहज महसूस कर रही थी क्योंकि साथ खड़े उसके दोनों बच्चे यह सारी बातें सुन रहे थे |
वह लोग वहाँ से दुखी मन लिए निकले, खामोशी पसरी हुयी थी।
वह लोग वहाँ से दुखी मन लिए निकले, खामोशी पसरी हुयी थी।
खामोशी तोड़ते हुये भामिनी बोली," कितना कठोर कानून बना हुआ है। फिर भी यह लोग सुधर नहीं रहे हैं। क्या किया जाए? कोई तरकीब, कोई रास्ता नही बचा ऐसे इन्सानो को सुधारने के लिए |"
दूसरे दिन सुबह उसके दोनों बच्चे कॉलेज और स्कूल जाने के लिए तैयार हुए और अपने पिता तथा भामिनी के पैर छूकर प्रणाम किए। भामिनी पूछी,"आज यह क्यों? कुछ खास है?"
बेटी मुस्कुरा दी। बेटे ने कहा ... दीदी ने कहा है आज से हम लोग रोज़ भगवान और मम्मी-पापा को प्रणाम कर बाहर निकलेंगे और उनसे कहेंगे- आशीर्वाद में दीर्घायु भव, यशस्वी भव, खुश रहो के साथ-साथ यह कहें कि कभी कोई गलत काम ना करना, जिसे देखकर, सुनकर या सहकर किसी को कष्ट पहुँचे,और वह कहे कि इस को जन्म देने से पहले ही इसकी माँ...
भामिनी मुस्कुराते हुए अपनी बेटी से बोली,"तुम मेडिकल स्टूडेंट, साइन्स को मानने वाली यह सब कैसे मानने लगी? तुमलोग तो इन सब बातो को लोगों का अंधविश्वास समझती थी। फिर आज?"
मुस्कुराते हुए बेटी बोली,"साइंस भी तो यह कहता है कि अगर एक ही बात रोज-रोज किसी इंसान से कहा जाए तो वह बात उसके दिमाग में अपनी जगह बना लेती है और वह उसे अपने आचरण में ढाल लेता है।"
दोनों स्कूल और कॉलेज के लिए निकल गए ।सबकुछ सुन रहे भामिनी के पति उससे बोले," लो! बच्चे भी तुम्हारी तरह सोचने लगे। पर क्या सच में आशीर्वाद को एक अच्छा और मजबूत हथियार बनाकर हम अपने बच्चों को गलत करने से रोक सकते हैं?"
पति का सवाल सुनते ही चहकते हुए भामिनी बोली," क्यों भूल गए रामायण का वह दृश्य, जब राजा दशरथ के बाण लगने से श्रवण कुमार की मृत्यु हो गयी थी ,उसके बाद अपना प्राण त्यागते हुए ,उसके माता-पिता ने राजा दशरथ को श्राप दे दिया था कि- आपकी भी मृत्यु अपने पुत्र के वियोग में होगी, बिल्कुल हमारी तरह, और उनकी बातें सच हुई थी ,राजा दशरथ भी तो पुत्र वियोग में स्वर्ग सिधारे ...
और महाभारत में जब पाँचों पांडवों की मृत्यु समीप थी, तभी श्रीकृष्ण ने द्रौपदी से कहा था .. जाकर भीष्म पितामह को प्रणाम करो। और जब द्रोपती ने भीष्म पितामह को प्रणाम किया, उनके मुख से निकल गया- सदा सुहागन रहो ...और इस तरह उसने पांडवों की जान बचा ली थी । हमारे संस्कार और सभ्यता में बहुत दम है , इतनी शक्ति है कि गलत को भी सही कर देती है। बस हमारे अंदर यकीन होना चाहिए, सम्मान होना चाहिए इन सब बातों को मानने और अमल मे लाने के लिए||
और महाभारत में जब पाँचों पांडवों की मृत्यु समीप थी, तभी श्रीकृष्ण ने द्रौपदी से कहा था .. जाकर भीष्म पितामह को प्रणाम करो। और जब द्रोपती ने भीष्म पितामह को प्रणाम किया, उनके मुख से निकल गया- सदा सुहागन रहो ...और इस तरह उसने पांडवों की जान बचा ली थी । हमारे संस्कार और सभ्यता में बहुत दम है , इतनी शक्ति है कि गलत को भी सही कर देती है। बस हमारे अंदर यकीन होना चाहिए, सम्मान होना चाहिए इन सब बातों को मानने और अमल मे लाने के लिए||
अपने बच्चों द्वारा सुझाए गए इस तरकीब रूपी हथियार ,जो असरदार, सहज, सुंदर और हर माता -पिता के पास उपलब्ध भी होता है, का इस्तेमाल करने का मन बना,भामिनी और उसके पति अपने बच्चो की सोच पर गर्व करते हुए, अपने वेद-पुराणों मे सहेजी गयी अन्य जीवनोपयोगी सिद्धान्तो की बातें करने लगे।...
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