तुम्हारी माँ मेरी माँ... वैसे सिर्फ घूमने आ रही हैं

अब मुझसे भी कोई उम्मीद ना रखना..!






रोनित मेरी मम्मा आ रही हैं कुछ दिनों के लिए... उम्मीद करती हूँ कि तुम्हे कोई परेशानी नहींं होगी | (रचना ने अपने पति रोनित से कहा) रोनित ने कहा- हाँ बुला लो ना मुझे क्या परेशानी हो सकती है भला ..तुम्हारी माँ मेरी माँ... वैसे सिर्फ घूमने आ रही हैं या कुछ काम से?? रचना ने कहा- हाँ वो पिछले कई महीने से मम्मी की तबियत ठीक नहींं रहती है, वहाँ इलाज करवाया पर वो छोटा कस्बा है तो पूरी सुविधा नहीं है उधर इसलिए मैने ही कहा कि यहाँ आ जाओ मम्मी | रोनित ने कहा- चलो ठीक है, अभी मैं ऑफिस के लिए निकल रहा हूँ | तुम जा कर पिकअप कर लेना उन्हे| कैसी बातें कर रहे हो रोनित.. मैं अकेले जाऊँगी तो क्या सोचेंगी वो , तुम भी साथ चलना| लंच के बाद आ जाना हॉफ डे लेकर | (रचना ने चिढ़ते हुए कहा)रोनित ने हँसते हुए कहा- क्या सोचेंगी यही कि मेरी बेटी कितनी स्मार्ट हो गयी है , अकेले ही आ गयी | रचना तुम चली जाना ना यार आज जरूरी मीटिंग है वरना मैं पक्का आ जाता | दुखी मन से रचना ने कहा- ठीक है चलो क्या कर सकते हैं |रचना दोपहर में कैब बुक कर के गयी और अपनी माँ को लेकर आयी | पिता का तो कई सालों पहले ही देहांत हो चुका था और रचना का भाई सुनील विदेश में रहता था| रचना ने माँ के आवाभगत में कोई कमी नहीं छोड़ी और रोनित को भी कॉल कर के बता दिया कि माँ आ चुकी हैं | रोनित शाम में आया , रचना सामान लाने बाहर गयी थी तो रचना की माँ ने ही चाय बना दिया | रोनित ने कहा भी माँ आप क्यों तकलीफ कर रही हैं, रचना आती ही होगी आप बैठिये |माँ ने भी मुस्कराहट के साथ कहा- इसमें तकलीफ कैसी... आप भी तो मेरे लिए रचना और सुनील की तरह ही तो हैं | रोनित चाय पी रहा था तभी रचना आयी और देख कप बोली - अरे आज सूरज पश्चिम से उगा है क्या जो रोनित ने चाय बना दी | तो रोनित ने बताया कि नहीं माँ ने बनाया है | रचना ने भी मजाक करते हुए कहा- वाह जी वाह! दामाद की ही तो किस्मत होती है...जो सास की सेवा सत्कार का लुत्फ उठाते हैं वरना हमें देख लो.. कितना भी काम कर लें फिर भी कमियाँ ही देखी जाती हैं |हँसी मजाक के बीच ऐसे ही कुछ दिन बीत गये | रचना ने डॉक्टर से अपॉइंटमेंट लिया और रोनित को भी अस्पताल चलने बोला पर रोनित ने जरूरी काम का बहाना बना कर टाल दिया | रचना को बुरा लगा पर उसने उस बारे में ज्यादा सोचना ना चाहा और माँ का चेकअप करवाया | कुछ टेस्ट हुए जिसकी रिपोर्ट एक हफ्ते बाद मिलने वाली थी | शाम में रोनित के लौटने पर रचना ने सब बताया तो अचानक से रोनित ने कहा- क्या अभी एक और सप्ताह...!! रचना और माँ एक दूसरे का मुँह देखने लगे | रचना को थोड़ा गुस्सा भी आया पर माँ ने हालात को सम्भालते हुए कहा.. एक सप्ताह तो यूँ ही निकल जाएगा | मैं सोच रही हूँ तब तक अपनी बहन के घर हो आती हूँ , बस कुछ ही घण्टों का तो सफर है | मिलना भी हो जायेगा | रचना ने कहा नहीं माँ कहीं जाने की जरूरत नहीं है | आप पिछले महीने ही मिली थी मासी से , जब वो काम से आपके शहर गयी थी और कुछ घंटे नहीं , पूरे सात घण्टों का सफर है | माँ आप वहाँ नहीं जा सकती आपकी तबियत भी ठीक नहीं है | रचना ने माँ को नहीं जाने दिया पर उसी रात से रोनित के रंग ढंग बदल गये थे | वो रचना से कहने लगा कि उनका मन था तो जाने देती , रोका क्यूँ | रचना ने भी कहा- कैसे जाने देती , माँ की तबियत खराब है ...|रोनित ने कहा- हाँ अब तो तुम्हे सिर्फ माँ ही दिखती है ना | मैं तो हूँ ही नहीं तुम्हारे लिए | दिन भर माँ...माँ की रट लगाये हुए हो | माँ को ये पसंद है, माँ को वो पसंद है | ये लेते आना, वो कर देना... सब बस तुम्हारी माँ के हिसाब से ही चाहियो तुम्हे | जाओ अपनी माँ के पास.. यहाँ क्यों बैठी हो | रचना की आँखें भर आयी ..उसे गुस्सा भी आया पर वो जानती थी कि गुस्से से कोई हल नहींं निकलता है | बिना कुछ कहे रचना चुपचाप सो गयी | सुबह भी रोनित ने रचना से कोई बात नहींं की और बिना टिफिन लिए ऑफिस चला गया | माँ ने रचना का सूजा हुआ चेहरा देखा तो पूछा- बेटा कुछ परेशानी है क्या..| लगता है रोनित जी को मेरा यहाँ रहना पसंद नहीं आ रहा है | रचना ने कहा- नहीं माँ, ऐसा कुछ नहीं है | आप टेंशन ना लो और आराम करो | मैं अभी दूध का पैकेट लेकर आती हूँ नीचे से | माँ सब समझ चुकी थी , उन्होने उस पैथालॉजी का नम्बर लिया अपने फाईल से और कॉल लगाया | माँ ने बहुत निवेदन किया तो पैथालॉजी वाला मना नहीं कर सका और दो दिन में रिपोर्ट देने बोला |
पूरा दिन माँ और रचना ने साथ में ही बिताया | बार बार रचना की नज़र अपने फोन पर ही थी.. ऑफिस से दो तीन बार कॉल करने वाले पति ने आज एक मैसेज तक नहीं किया और ना ही रचना के मैसेज का जवाब दिया | ऑफिस से आने के बाद भी रोनित का रवैया उखड़ा सा ही था | रचना को बहुत बुरा लग रहा था पर वो माँ के सामने कोई सीन नहीं बनाना चाहती थी | वो चुपचाप रोनित की बाते सुनती रहती | दो दिन बाद पैथालॉजी से कॉल आया कि रिपोर्ट आगयी है , रचना ने हैरानी से पूछा- इतनी जल्दी तो सामने से जवाब मिला कि आप लोगों ने इतनी मिन्नतें की तो मैं क्या करता पर आगे से ऐसा नहीं करियेगा |रचना सब समझ गयी और उसके आँसू बहने लगे | उसने खुद को शांत किया और माँ को लेकर डॉक्टर के पास गयी | डॉक्टर ने दवाईयाँ लिखी और आराम करने की सलाह दी और बताया कि माँजी को कमज़ोरी है तो थोड़ा ध्यान रखें | घर आते ही माँ ने अपना सामान पैक किया और रचना को कहा कि टिकट बुक कर दे शाम का ही | रचना रोते हुए बोली- माँ मत जाओ अभी , कुछ दिन और रूक जाओ प्लीज | माँ ने कहा- मैं रूक जाती बेटा पर वहाँ भी तो काम है ना रचना | मेरा सिलाई सेंटर भी बंद पड़ा है , सब कॉल कर रहे हैं कि जल्दी आकर हमें सिखाईये | अब जाने दे बेटा..देख मैं ठीक हूँ और दवाईयाँ भी लेती रहूँगी | तुम चिंता ना करो |रचना आगे कुछ ना कह सकी... माँ बेटी दोनों अच्छे से समझ रहे थे कि बात क्या है पर वो कुछ ना कह सके एक दूसरे से | रचना ने टिकट बुक किया और माँ को एयरपोर्ट ले गयी | घर लौटते ही रचनी के दिल का सैलाब टूट पड़ा और वो फूट फूट कर रोने लगी कि जिस माँ ने उसका इतना खयाल रखा ...उस माँ को वो एक हफ्ते भी अपने घर ना रख सकी | शाम में रोनित आया और माँ को ना देख कर पूछा कि माँ कहाँ गयी?? रचना ने बताया कि वो वापस चली गयी हैं | रोनित ने कहा- तुमने मुझे बताया क्यों नहीं, मैं भी चलता उन्हे छोड़ने | क्या सोच रही होंगी वो भला |रचना ने कहा- यही सोच रही होंगी कि अब उनकी बेटी होशियार हो चुकी है , उसे किसी सहारे की जरूरत नहीं है | रोनित ने ताव दिखाते हुए कहा- हाँ हाँ ठीक है सब समझता हूँ मैं | मैंने तो पहले ही कहा था कि तुम्हारी माँ आ रही है तो तुम देख लेना,मेरा बहुत बिजी शेड्यूल है तो मुझसे उम्मीदें मत लगाना | अब शायद रचना को वो मौका मिल चुका था जिसकी उसे तलाश थी ...उसने तुरंत रोनित को रोकते हुए कहा- हाँ रोनित सही कहा आपने , मुझे आपसे कोई उम्मीद नहीं रखना चाहिये और यही बात मैं भी आपसे कहना चाहती हूँ कि आप भी मुझसे कोई उम्मीद मत रखना |मैंने आज तक आपके लिए , आपके परिवार के लिए जो कुछ भी किया सब दिल से किया... सबको अपना समझा | अपने सपने, अपनी नौकरी सब छोड़ दी मैंने जब आपके परिवार को मेरी जरूरत थी तो | अपनी सहनशक्ति से ज्यादा सहा मैंने जब आपकी माँ और बहनों ने मुझ पर तानों की झड़ी लगायी | खुद को भूल गयी थी मैं सबको खुश ऱखने के चक्कर में पर एक को खुश करूँ तो दूसरा नाराज हो जाता था | जब मेरा पूरा वक्त आपके परिवार के सेवा सत्कार में जाता था तब आपको कभी ये नहीं महसूस हुआ कि मैं आपको समय नहींं दे रही हूँ पर आज चार दिन में ही आपको ये एहसास हो गया कि मैं आपके लिए कुछ नहींं करती | मेरी बीमार माँ की बीमारी नज़र नहींं आयी आपको ,नजर आयी तो सिर्फ मेरी बेरूखी | जितनी खुशी से मैने माँ को यहाँ बुलाया था उतने ही दुख के साथ उन्हे वापस भेज कर आ रही हूँ | रोनित ने कहा- पर मैंने क्या किया तुम्हारी माँ के साथ जो तुम मुझे इतना सुना रही हो | उनकी मर्जी से आयी और गयी |रचना ने कहा- हाँ रोनित वो अपनी मर्जी से आयी और गयी | आपने क्या किया और क्या नहीं ये आपसे बेहतर कौन जानता है भला | काश मेरी माँ को भी आपने अपनी माँ की तरह समझा होता , उनकी बीमारी की वजह से तो मैने नौकरी तक छोड़ दी थी.. शायद बेवकूफ थी मैं पर अब नहीं | अब जब भी जरूरत पड़ेगी तो मेरी माँ यहाँ नहीं आयेगी बल्कि मैं माँ के पास जाऊँगी और आप चिंता ना करिये क्योंकि मैने आपसे कोई उम्मीद नहीं लगा रखी है पर आज मैं आपको भी बता देती हूँ कि अब आप या आपके परिवार वाले मुझसे कोई भी किसी तरह की कोई उम्मीद ना रखना | धन्यवाद! दोस्तों रिश्ता एक तरफ से नहीं निभाया जाता है | जब लड़का लड़की की शादी होती है तो लड़की को ससुराल और ससुराल वालों का मान सम्मान करना सिखाया जाता है पर ये शिक्षा सिर्फ लड़की के माँ बाप ही क्यों देते हैं ?? क्या लड़के के माँ बाप का फर्ज नहींं बनता कि वो भी अपने लड़के को ससुराल का मान सम्मान करना सिखाये ...बहु बन कर लड़की जीवनपर्यन्त सास ससुर की सेवा करती है पर लड़के सिर्फ दामाद बन कर सुख ही क्यों भोगें..क्या उनका कोई दायित्व नहींं बनता अपने सास ससुर के लिए.... | आपकी क्या राय है जरूर बताईयेगा 


Show more reactions

Comments