अभी नहीं संभले तो इतिहास के पन्नों में सिमट जाएंगी ये प्रजातियां
आज हम पृथ्वी दिवस मना रहे हैं। हमने डायनासोर, बड़े दांत वाले हाथी, गिद्ध जैसे प्रजातियों के बारे में किताबों में ही पढ़ा है, उन्हें कभी देखा नहीं। इस बात को लेकर विशेषज्ञ चिंतित हैं कि प्रकृति में हो रहे बदलाव के चलते हमारी आने वाली पीढ़ी घर के आंगन में चहचहाने वाली गौरेया, फूलों पर मंडराती रंग-बिंरगी तितली और भंवरें, पराग से शहद बनाती मधुमक्खी, दाना ले जातीं चींटियां और चीता जैसी कई प्रजातियों के बारे में किताबों में पढ़कर ना जाने। इसी को ध्यान में रखते हुए इस बार विश्व पृथ्वी दिवस की थीम 'प्रजातियों को संरक्षित करें' रखी गई।
दिनोंदिन धरती के तापमान में वृद्धि हो रही है, हिमखंड तेजी से पिघल रहे हैं और समुद्र का जलस्तर लगातार बढ़ रहा है, इससे समूची कुदरत के लिए अस्तित्वका संकट खड़ा हो गया है।वैज्ञानिकों का मानना है कि छठे विशाल तरीके से लुप्त होने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। हाल ही में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक, मधुमक्खियां, चींटियां, गुबरैले (बीटल), मकड़ी, जुगनू जैसे कीट जो हमारे जीवन का अभिन्न अंग हैं, अन्य स्तनधारी जीवों, पक्षियों और सरीसृपों की तुलना में आठ गुना तेजी से लुप्त हो रहे हैं। बायोलॉजिकल कंजर्वेशन नामक जर्नल में प्रकाशित इस रिपोर्ट में पिछले 13 वर्षों में दुनिया के विभिन्न हिस्सों में प्रकाशित 73 शोधों की समीक्षा की गई। इसमें शोधकर्ताओं ने पाया कि सभी जगहों पर संख्या में कमी आने के कारण अगले कुछ दशकों में 40 प्रतिशत कीट विलुप्त हो जाएंगे। कीटों की एक तिहाई प्रजातियां खतरे में घोषित की गई हैं। जबकि इसके विपरीत हानिकार कीट जैसे मक्खियों और कॉकरोच की संख्या बढ़ने की संभावना है। इसकी वजह कि ये बदलते हालात के हिसाब से खुद को ढाल लेती हैं और कीटनाशकों को लेकर इनमें प्रतिरोधक क्षमता है।
क्यों जरूरी हैं कीट-पतंगे
अध्ययन के अनुसार, दुनिया भर में कीटों की संख्या हर साल 2.5 फीसदी कम हो रही है। कीट-पतंगों का कम होना पारिस्थितिकी तंत्र के लिए घातक है क्योंकि पारिस्थितिकी तंत्र और खाद्य श्रृंखला के संतुलन के लिए कीट-पंतगें बहुत जरूरी हैं। वे पौधों और फसलों को परागित करते हैं, कचरे को रीसाइकिल करते हैं और स्वयं दूसरों के भोजन का स्रोत होते हैं।
लुप्त होने की प्रमुख वजह
जलवायु परिवर्तन, वनों की कटाई, बढ़ते कंक्रीट, शहरीकरण, अवैध शिकार और खेती-बाड़ी में कीटनाशक दवाओं का इस्तेमाल, समुद्र में व्याप्त प्लास्टिक प्रदूषण इन प्रजातियों को लुप्त होने के लिए जिम्मेदार हैं।
कैसे बचाएं फायदेमंद कीटों को
ससेक्स यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डेव गॉलसन ने कहा कि विलुप्त होती कीट-पतंगों की प्रजातियों को बचाने के लिए लोग अपने बगीचों को कीटों के अनुकूल बनाएं और कीटनाशक का इस्तेमाल न करें। इसके अलावा ऑर्गेनिक फूल खरीदकर और इसे इस्तेमाल करके भी लोग फायदेमंद कीटों को विलुप्त होने से बचाने में योगदान कर सकते हैं।
कितनी प्रजातियां लुप्तप्राय हैं ?
अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएन) ने विलुप्त होने की कगार पर खड़े जानवरों की सूची जारी की है। इसके मुताबिक, 26,500 से अधिक प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा है, जिनमें से 40 प्रतिशत उभयचर, 34 प्रतिशत शंकुधारी, 33 प्रतिशत रीफ-बिल्डंग कोरल, 25 प्रतिशत स्तनधारी, 14 प्रतिशत पक्षी हैं।
भारत में क्या स्थिति
भारत में इन प्रजातियों पर खतरा :-
एक सिंघ वाला गेंडा, नीलगिरि तहर, बंगाल टाइगर, एशियाई शेर, काला हिरण, कश्मीर हिरण, लायन टेल्ड मैकॉक, हिम तेंदुआ, डॉल्फिन, व्हेल, फिशिंग कैट, लाल पांडा, कछुआ, बंगाल फ्लोरिकन, सफेद गिद्ध, बस्टर्ड, काला कौआ, कठफोड़वा, सारस, गौरेया और कोयल आदि।
दुनिया भर में विलुप्त के कगार पर :-
साइगा हिरण, धुव्रीय भालू, फिलीपिंस ईगल, लंबी नाक वाला बंदर, स्नब नोज्ड मंकी, जुगनू, पाइड टैमेरिन, ट्री पैंगोलिन, एनग्नोइका टोरटोइज, अफ्रीकी हाथी, दरियाई घोंड़ा, गोल्डन नोज्ड मंकी,सी एंजल्स, पश्चिमी तराई गोरिल्ला आदि।
70 फीसदी अमेरिकी भौंरे कम हुए :-
शोधकर्ताओं ने पाया कि अमेरिकी भौंरों की संख्या में लगभग 70 फीसदी की कमी आई। 2007 से 2016 में इनकी संख्याय 89 प्रतिशत कम हो गई अब ये भी विलुप्त प्रजाति में शामिल हुए। वहीं 30 वैक्विटा मछलियां बची हैं आने वाले दशक में
आज हम पृथ्वी दिवस मना रहे हैं। हमने डायनासोर, बड़े दांत वाले हाथी, गिद्ध जैसे प्रजातियों के बारे में किताबों में ही पढ़ा है, उन्हें कभी देखा नहीं। इस बात को लेकर विशेषज्ञ चिंतित हैं कि प्रकृति में हो रहे बदलाव के चलते हमारी आने वाली पीढ़ी घर के आंगन में चहचहाने वाली गौरेया, फूलों पर मंडराती रंग-बिंरगी तितली और भंवरें, पराग से शहद बनाती मधुमक्खी, दाना ले जातीं चींटियां और चीता जैसी कई प्रजातियों के बारे में किताबों में पढ़कर ना जाने। इसी को ध्यान में रखते हुए इस बार विश्व पृथ्वी दिवस की थीम 'प्रजातियों को संरक्षित करें' रखी गई।
दिनोंदिन धरती के तापमान में वृद्धि हो रही है, हिमखंड तेजी से पिघल रहे हैं और समुद्र का जलस्तर लगातार बढ़ रहा है, इससे समूची कुदरत के लिए अस्तित्वका संकट खड़ा हो गया है।वैज्ञानिकों का मानना है कि छठे विशाल तरीके से लुप्त होने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। हाल ही में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक, मधुमक्खियां, चींटियां, गुबरैले (बीटल), मकड़ी, जुगनू जैसे कीट जो हमारे जीवन का अभिन्न अंग हैं, अन्य स्तनधारी जीवों, पक्षियों और सरीसृपों की तुलना में आठ गुना तेजी से लुप्त हो रहे हैं। बायोलॉजिकल कंजर्वेशन नामक जर्नल में प्रकाशित इस रिपोर्ट में पिछले 13 वर्षों में दुनिया के विभिन्न हिस्सों में प्रकाशित 73 शोधों की समीक्षा की गई। इसमें शोधकर्ताओं ने पाया कि सभी जगहों पर संख्या में कमी आने के कारण अगले कुछ दशकों में 40 प्रतिशत कीट विलुप्त हो जाएंगे। कीटों की एक तिहाई प्रजातियां खतरे में घोषित की गई हैं। जबकि इसके विपरीत हानिकार कीट जैसे मक्खियों और कॉकरोच की संख्या बढ़ने की संभावना है। इसकी वजह कि ये बदलते हालात के हिसाब से खुद को ढाल लेती हैं और कीटनाशकों को लेकर इनमें प्रतिरोधक क्षमता है।
क्यों जरूरी हैं कीट-पतंगे
अध्ययन के अनुसार, दुनिया भर में कीटों की संख्या हर साल 2.5 फीसदी कम हो रही है। कीट-पतंगों का कम होना पारिस्थितिकी तंत्र के लिए घातक है क्योंकि पारिस्थितिकी तंत्र और खाद्य श्रृंखला के संतुलन के लिए कीट-पंतगें बहुत जरूरी हैं। वे पौधों और फसलों को परागित करते हैं, कचरे को रीसाइकिल करते हैं और स्वयं दूसरों के भोजन का स्रोत होते हैं।
लुप्त होने की प्रमुख वजह
जलवायु परिवर्तन, वनों की कटाई, बढ़ते कंक्रीट, शहरीकरण, अवैध शिकार और खेती-बाड़ी में कीटनाशक दवाओं का इस्तेमाल, समुद्र में व्याप्त प्लास्टिक प्रदूषण इन प्रजातियों को लुप्त होने के लिए जिम्मेदार हैं।
कैसे बचाएं फायदेमंद कीटों को
ससेक्स यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डेव गॉलसन ने कहा कि विलुप्त होती कीट-पतंगों की प्रजातियों को बचाने के लिए लोग अपने बगीचों को कीटों के अनुकूल बनाएं और कीटनाशक का इस्तेमाल न करें। इसके अलावा ऑर्गेनिक फूल खरीदकर और इसे इस्तेमाल करके भी लोग फायदेमंद कीटों को विलुप्त होने से बचाने में योगदान कर सकते हैं।
कितनी प्रजातियां लुप्तप्राय हैं ?
अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएन) ने विलुप्त होने की कगार पर खड़े जानवरों की सूची जारी की है। इसके मुताबिक, 26,500 से अधिक प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा है, जिनमें से 40 प्रतिशत उभयचर, 34 प्रतिशत शंकुधारी, 33 प्रतिशत रीफ-बिल्डंग कोरल, 25 प्रतिशत स्तनधारी, 14 प्रतिशत पक्षी हैं।
भारत में क्या स्थिति
भारत में इन प्रजातियों पर खतरा :-
एक सिंघ वाला गेंडा, नीलगिरि तहर, बंगाल टाइगर, एशियाई शेर, काला हिरण, कश्मीर हिरण, लायन टेल्ड मैकॉक, हिम तेंदुआ, डॉल्फिन, व्हेल, फिशिंग कैट, लाल पांडा, कछुआ, बंगाल फ्लोरिकन, सफेद गिद्ध, बस्टर्ड, काला कौआ, कठफोड़वा, सारस, गौरेया और कोयल आदि।
दुनिया भर में विलुप्त के कगार पर :-
साइगा हिरण, धुव्रीय भालू, फिलीपिंस ईगल, लंबी नाक वाला बंदर, स्नब नोज्ड मंकी, जुगनू, पाइड टैमेरिन, ट्री पैंगोलिन, एनग्नोइका टोरटोइज, अफ्रीकी हाथी, दरियाई घोंड़ा, गोल्डन नोज्ड मंकी,सी एंजल्स, पश्चिमी तराई गोरिल्ला आदि।
70 फीसदी अमेरिकी भौंरे कम हुए :-
शोधकर्ताओं ने पाया कि अमेरिकी भौंरों की संख्या में लगभग 70 फीसदी की कमी आई। 2007 से 2016 में इनकी संख्याय 89 प्रतिशत कम हो गई अब ये भी विलुप्त प्रजाति में शामिल हुए। वहीं 30 वैक्विटा मछलियां बची हैं आने वाले दशक में
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