स्‍त्री हो या पुरुष उसके मांगलिक होने का अर्थ है

मांगलिक जातक विचार

कोई जातक चाहे वह स्‍त्री हो या पुरुष उसके मांगलिक होने का अर्थ है कि उसकी कुण्‍डली में मंगल अपनी प्रभावी स्थिति में है ।
 
शादी के लिए मंगल को जिन स्‍थानों पर देखा जाता है वे 1,4,7,8 और 12 भाव हैं. इनमें से केवल आठवां और बारहवां भाव सामान्‍य तौर पर खराब माना जाता है. सामान्‍य तौर का अर्थ है कि विशेष परिस्थितियों में इन स्‍थानों पर बैठा मंगल भी अच्‍छे परिणाम दे सकता है । 

मांगलिक होने का विशेष गुण यह होता है कि मांगलिक कुंडली वाला व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी को पूर्ण निष्ठा से निभाता है, कठिन से कठिन कार्य वह समय से पूर्व ही कर लेते हैं, नेतृत्व की क्षमता, उनमें जन्मजात होती है, ये लोग जल्दी किसी से घुलते-मिलते नहीं परन्तु जब मिलते हैं तो पूर्णतः संबंध को निभाते हैं । 


मांगलिक जातक कठोर निर्णय लेने वाला, कठोर वचन बोलने वाला, लगातार काम करने वाला, विपरीत लिंग के प्रति कम आकर्षित होने वाला, प्‍लान बनाकर काम करने वाला, कठोर अनुशासन बनाने और उसे फॉलो करने वाला, एक बार जिस काम में जुटे उसे अंत तक करने वाला, नए अनजाने कामों को शीघ्रता से हाथ में लेने वाला और किसी भी लड़ाई से नहीं घबराने वाला होता है । 

अति महत्वकांक्षी होने से इनके स्वभाव में क्रोध पाया जाता है परन्तु यह बहुत दयालु, क्षमा करने वाले तथा मानवतावादी होते है, गलत के आगे झुकना इनकी पसंद नहीं होता और खुद भी गलती नहीं करते. इन्‍हीं विशेषताओं के कारण गैर मांगलिक व्‍यक्ति अधिक देर तक मांगलिक के सानिध्‍य में नहीं रह पाता ।


लग्‍न का मंगल व्‍यक्ति की व्यक्तित्व को बहुत अधिक तीक्ष्‍ण बना देता है, चौथे का मंगल जातक को कड़ी पारिवारिक पृष्‍ठभूमि देता है । 
सातवें स्‍थान का मंगल जातक को साथी या सहयोगी के प्रति कठोर बनाता है ।

आठवें और बारहवें स्‍थान का मंगल आयु और शारीरिक क्षमताओं को प्रभावित करता है. इन स्‍थानों पर बैठा मंगल यदि अच्‍छे प्रभाव में है तो जातक के व्‍यवहार में मंगल के अच्‍छे गुण आएंगे और खराब प्रभाव होने पर खराब गुण आएंगे ।
 
मांगलिक दोष के प्रकार

जिस जातक की जन्म कुंडली में 1, 4, 7, 8, 12वें भाव में कहीं पर भी मंगल स्थित हो उसके साथ शनि, सूर्य, राहु पाप ग्रह बैठे हों तो व पुरुष गोलिया मंगल, स्त्री जातक चुनड़ी मंगल हो जाती है अर्थात द्विगुणी मंगली इसी को माना जाता है।

मांगलिक दोष परिहार

इन स्थिति में मांगलिक दोष का स्वतः ही परिहार हो जाता है।

1.यदि मंगल कर्क राशि में नीच घर में हो।
2.यदि मंगल मिथुन या कन्या राशि के दुश्मन घर में हो।
3.यदि मंगल सूर्य के पास अस्तंगत।
4.यदि मंगल मेष राशि के पहले घर में हो।
5.यदि मंगल वृश्चिक के चौथे घर में हो।
6.यदि मंगल मकर राशि के सातवें घर में हो।
7.यदि मंगल सिंह राशि के आठवें घर में हो।
8.यदि मंगल धनु राशि के बारहवें घर में हो।

मांगलिक वर/वधु विवाह विचार एवं दोष शांति के उपाय

यदि वर कन्या में से केवल किसी एक की जन्म कुन्डली में ही उक्त प्रकार का मंगल विराजमान हो, दूसरे की कुन्डली में नहीं हो तो इसका सर्वथा विपरीत प्रभाव ही समझना चाहिये. अथवा वह स्थिति दोषपूर्ण ही होती है. यदि मंगल अशुभ भावों में हो तो भी विवाह नही करना चाहिये. परन्तु यदि गुण अधिक मिलते हो तथा वर कन्या दोनो ही मंगली हो तो विवाह करना शुभ होता है. लगन दूसरे भाव चतुर्थ भाव सप्तम भाव और बारहवें भाव के मंगल के लिये वैदिक उपाय बताये गये हैं.


सबसे पहला उपाय तो मांगलिक जातक के साथ मांगलिक जातक की ही शादी करनी चाहिये. लेकिन एक जातक मांगलिक और उपरोक्त कारण अगर मिलते है तो दूसरे मे देखना चाहिये कि मंगल को शनि के द्वारा कहीं द्रिष्टि तो नहीं दी गयी है. कारण शनि ठंडा ग्रह है और जातक के मंगल को शांत रखने के लिये काफी हद तक अपना कार्य करता है. दूसरे पति की कुंडली में मंगल असरकारक है और पत्नी की कुंडली में मंगल असरकारक नहीं है तो शादी नही करनी चाहिये.

वैसे मांगलिक पति और पत्नी को शादी के बाद लालवस्त्र पहिन कर तांबे के लोटे में चावल भरने के बाद लोटे पर सफेद चन्दन को पोत कर एक लाल फूल और एक रुपया लोटे पर रखकर पास के किसी हनुमान मन्दिर में रख कर आना चाहिये. चांदी की चौकोर डिब्बी में शहद भरकर रखने से भी मंगल का असर कम हो जाता है. घर में आने वाले मेहमानों को मिठाई खिलाने से भी मंगल का असर कम रहता है. मंगल शनि और चंद्र को मिलाकर दान करने से भी फायदा मिलता है. मंगल से मीठी शनि से चाय और चंद्र से दूध से बनी पिलानी चाहिये.


शास्त्रकारों का मत ही इसका निर्णय करता है कि जहां तक हो मांगलिक से मांगलिक का संबंध करें. फिर भी मांगलिक एवं अमांगलिक पत्रिका हो, दोनों परिवार अपने पारिवारिक संबंध के कारण पूर्ण संतुष्ट हो, तब भी यह संबंध श्रेष्ठ नहीं है. ऐसा नहीं करना चाहिए. ऐसे में अन्य कई कुयोग हैं. जैसे वैधव्य विषागना आदि दोषों को दूर रखें. यदि ऐसी स्थिति हो तो ‘पीपल’ विवाह, कुंभ विवाह, सालिगराम विवाह तथा मंगल यंत्र का पूजन आदि कराके कन्या का संबंध अच्छे ग्रह योग वाले वर के साथ करें. मंगल यंत्र विशेष परिस्थिति में ही प्रयोग करें. देरी से विवाह, संतान उत्पन्न की समस्या, तलाक, दाम्पत्य सुख में कमी एवं कोर्ट केस इत्या‍दि में ही इसे प्रयोग करें. छोटे कार्य के लिए नहीं. 
पूजा पाठ द्वारा अन्य उपाय
मांगलिक जातको को विवाह से पहले मांगलिक दोष की पूजा अवश्य करना चाहिए. चाहे मांगलिक दोष भंग आपकी कुंडली में क्यों न हो गया हो फिर भी मंगल यंत्र मांगलिकों को सर्वत्र जय, सुख, विजय और आनंद देता है. 

मंगल की पूजा मंगल देव के निम्न नामो द्वारा भी की जाती है
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1. ऊँ मंगलाय नम:

2. ऊँ भूमि पुत्राय नम:

3. ऊँ ऋण हर्वे नम:

4. ऊँ धनदाय नम:

5. ऊँ सिद्ध मंगलाय नम:

6. ऊँ महाकाय नम:

7. ऊँ सर्वकर्म विरोधकाय नम:

8. ऊँ लोहिताय नम:

9. ऊँ लोहितगाय नम:

10. ऊँ सुहागानां कृपा कराय नम:

11. ऊँ धरात्मजाय नम:

12. ऊँ कुजाय नम:

13. ऊँ रक्ताय नम:

14. ऊँ भूमि पुत्राय नम:

15. ऊँ भूमिदाय नम:

16. ऊँ अंगारकाय नम:

17. ऊँ यमाय नम:

18. ऊँ सर्वरोग्य प्रहारिण नम:

19. ऊँ सृष्टिकर्त्रे नम:

20. ऊँ प्रहर्त्रे नम:

21. ऊँ सर्वकाम फलदाय नम:

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