भारत में सरकार नहीं मंदिर देते हैं रोजगार 2019

भारत में सरकार नहीं मंदिर देते हैं रोजगार।
भारत में करीब एक करोड़ मन्दिर होंगे।





अगर प्रत्येक मन्दिर पर कम से कम एक पुजारी जोड़ लिया जाए और उसकी पत्नी व दो बच्चों को, तो संख्या चार लोगों की बनती है, कुल चार करोड़ लोग हुए।
हर मंदिर पर चार दुकानें होंगी जो मन्दिरों के आस पास नजर आती हैं। इनको जोड़ो तो संख्या सोलह लोगों की बनती है जिनका चूल्हा चौका इन मन्दिरों से चलता है। 
जिसमें फूल माला की दुकान, अगरबत्ती व मिठाइयों की दुकान, फल, नारियल बेचने वालों का ठेला शामिल हैं। चप्पल स्टेंड वाले अलग से।
सोलह लोगों का मतलब सोलह करोड़ लोग हो गए।
खासबात यह है कि यहां भी स्वयंमेव वर्ण व्यवस्था लागू है। पुजारी ज्यादातर *ब्राह्मण* होते हैं,
मिठाई वाले ज्यादातर *बनिया*,
फूल माला वाला ज्यादातर *ओबीसी* और फल बेचने वाले ठेले वाले ज्यादातर *दलित समाज* से होते हैं। कुल बीस करोड़ लोग हुए।

इसके अलावा रिक्शा ऑटो चलाने वाले, लोगों को धार्मिक कार्यो में सहयोग करने वाले नाई व प्रजापति सरीखी जातियां जो दीपक मिट्टी के बर्तन वगैरह बनाती हैं।
अगर पूरी तरह से देखा जाए तो अकेले मन्दिर ही इस देश में तीस से चालीस करोड़ लोगों का रोजगार पैदा करवाते हैं।
हर दो दो महीनों पर पड़ने वाले त्यौहार इस देश में कभी मंदी नहीं आने देते।
एक होली दिवाली आती है और सेंसेक्स से लेकर ग्रामीण अर्थव्यवस्था के पिछले रिकार्ड तोड़ नई ऊंचाइयों तक पहुंच जाता है।
छठ जैसे पर्वों में कौन सी जातियां रोजगार नहीं पाती ?
इस देश में धार्मिक क्षेत्र से ज्यादा रोजगार कोई दूसरा सेक्टर नहीं पैदा करता।
जम्मू कश्मीर उत्तराखंड समेत जितने भी धार्मिक क्षेत्र हैं, एक बार जाकर देखें की वह कैसे रोजगार पैदा कर रहे हैं ? कई राज्यों की पूरी अर्थव्यवस्था ही इन धार्मिक क्षेत्रों पर निर्भर है!!

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